अलैंगिक जनन क्या है ?

अलैंगिक जनन

इस विधि में एकल जीव (जनन) संतति उत्पन्न करने की क्षमता रखता है। इसके परिणामस्वरूप जो संतति उत्पन्न होती है; वह केवल एक दूसरे के समरूप ही नहीं, बल्कि अपने जनक के एकदम समान होती है। क्या यह संतति आनुवंशिक रूप से भी एक समान अथवा भिन्न होती है? अकारिकीय तथा आनुवंशिक रूप से एक समान जीवों के लिए क्लोन शब्द की रचना की गई है।

यीस्ट में मुकुलन



आइए! जीवों के विभिन्न वर्गों के मध्य पाए जाने वाले अलैंगिक जनन के विस्तृत रूप का अध्ययन करें। अलैंगिक जनन सामान्य रूप से एकल जीव, पादप तथा जीव (अपेक्षाकृत साधारण जीव) आदि में पाया जाता है। प्रजीव तथा एक केंद्रकीय जीव (प्रोटिस्टा एवं मोनेरा) में जनक कोशिका दो में विभक्त होकर नए जीवों को जन्म देती हैं (चित्र 1.2)। अतः इन जीवों में समसूत्री कोशिका विभाजन एक प्रकार से जनन की क्रिया विधि है। बहुत से एकल-कोशिका जीव द्विखंडन से उत्पन्न होते हैं, जिनमें एक कोशिका दो भागों में विभक्त हो जाती है और प्रत्येक भाग एक वयस्क जीव के रूप में तीव्रता पूर्वक वृद्धि कर जाता है (जैसे अमीबा, पैरामीसियम आदि)। यीस्ट में यह विभाजन एक समान नहीं होता तथा छोटी कलिकाएँ उत्पन्न हो जाती हैं जो प्रारम्भ में तो जनक कोशिका से जुड़ी रहती हैं और बाद में अलग हो कर नए यीस्ट जीव में परिपक्व हो जाती है । 


विषम परिस्थितियों में अमीबा अपने पादाभ संकुचित कर लेता है तथा अपने परिक्षेत्र में एक त्रिस्तरीय कठोर आवरण स्रावित करता है जिसे पुटी (सिस्ट) कहते हैं। इस परिघटना को पुटीभवन कहते हैं। अनुकूल परिस्थितियों के पुनरागमन पर पुटीकृत अमीबा बहुखंडन द्वारा विभाजित होता है तथा अनेक सूक्ष्म अमीबा अथवा बीजाणु अमीबाभ (Pseudopodiospores) उत्पन्न करता है। पुटी की भित्ति के फट जाने से ये बीजाणु परिक्षेत्र के माध्यम में विमोचित हो जाते हैं। इनसे अनेक अमीबा विकसित होते हैं। इस अभिक्रिया को बीजाणुजनन कहते हैं।

फंजाई जगत के सदस्य तथा साधारण पादप जैसे शैवाल विशेष अलैंगिक जननीय संरचनाओं द्वारा जनन करते हैं (चित्र 1.3)। इन संरचनाओं में अत्यंत ही सामान्य संरचनाएँ अलैंगिक चलबीजाणु (जू स्पोर्स) हैं जो सामान्यतः सूक्ष्मदर्शीय चलनशील संरचनाएँ होती हैं। अन्य सामान्य अलैंगिक जनन संरचनाएँ कोनिडिया (पैनीसिलम), कलिका (हाइड्रा) तथा जैम्यूल (स्पंज) होते हैं।

कक्षा 11 में आपने पादपों के कायिक जनन के बारे में अवश्य ज्ञान प्राप्त किया होगा। आपका क्या विचार है कि कायिक जनन भी एक प्रकार का अलैंगिक जनन है? आप एेसा क्यों सोचते हैं? क्या क्लोन शब्द कायिक जनन से उत्पन्न संतति के लिए उपयोज्य है।

जबकि जंतुओं तथा अन्य साधारण जीवों में अलैंगिक शब्द का प्रयोग स्पष्ट रूप से तथा पादपों में इस शब्द का प्रयोग निरंतर किया जाता है। पादपों में कायिक प्रवर्धन की इकाई जैसे उपरिभूस्तारी (सर) प्रकन्द, (सरजोम) सकरकन्द, बल्व, भूस्तरी (औफ सेंट) सभी नयी संतति को पैदा करने का सामर्थ्य रखते हैं (चित्र 1.4)। ये संरचनाएँ कायिक प्रवर्ध (प्रोपेग्यूल) कहलाती हैं, चूँकि इन संरचनाओं के निर्माण में दो जनक भाग नहीं लेते, अतः यह अलैंगिक जनन ही होगा। कुछ जीवों में यदि शरीर अनेक टुकड़ों में विभक्त हो जाता है तो प्रत्येक भाग (टुकड़ा) वृद्धि करके नए जीव में विकसित हो जाता है जो संतति उत्पत्ति में सक्षम होते हैं (उदाहरणतः हाइड्रा)। यह भी अलैंगिक जनन की एक विधि है जिसे पुनरुद्भवन कहते हैं।

आपने निश्चित तौर पर जलाशयों की ‘महाविपत्ति’ (वाटर हायासिंथ) अथवा ‘बंगाल के आतंक’ के बारे में अवश्य सुना होगा। यह कुछ भी नहीं, बल्कि जलीय पादप वाटर हायसिंथ है जो ठहरे जल में सर्वाधिक वृद्धि करने वाला खरपतवार है। यह जल से अॉक्सीजन खींच लेता है जिसके परिणामस्वरूप मछलियाँ मर जाती हैं। आप इसके बारे में और अधिक अध्याय 13 और 14 में पढ़ेंगे। आपको जानकर रोचक लग सकता है कि इस पादप का भारतवर्ष में आगमन मात्र इसमें सुंदर आकार के पुष्प तथा पत्तियों के कारण हुआ। यद्यपि यह कायिक प्रवर्धन द्रुतगति से कर सकता है और अल्प समय में ही संपूर्ण जलाशय पर फैल जाता है और अपने आप से जलाशय को ढक देता है और इससे छुटकारा पाना बहुत ही कठिन होता है।

क्या आप इस तथ्य से परिचित हैं कि आलू, गन्ना, केला, अदरक, डहैलिया जैसे पादपों की खेती किस प्रकार की जाती है? क्या आपने आलू के कंद पर स्थित कलिका (जिसे आँख भी कहते हैं) से, और केले तथा अदरक के प्रकंद से नन्हा सा पादप निकलता हुआ देखा है? जब आप ध्यान पूर्वक उपर्युक्त सूचीबद्ध पादपों मेें से विकसित होने वाले पादपकों (प्लांटलेट्स) की उत्पत्ति स्थानों का निर्धारण करने का प्रयत्न करेंगे तब आप पाएँगे कि यह अधिकतर इन पादपों के रूपांतरित स्तंभों में उपस्थित प्रर्वसंधियों (नोड्स) से उत्पन्न होती हैं, जब यह पर्वसंधियाँ नमीयुक्त मृदा अथवा जल के संपर्क में आती हैं तब इनके मूल (रूट्स) तथा नए पादप उत्पन्न होते हैं। ठीक इसी प्रकार पत्थरचटा (ब्रायोफिलम) की पत्तियों में कटे किनारों से अपस्थानिक (एडवेंटिसियस) कलिकाएँ उत्पन्न होती हैं। माली लोग तथा किसान पादपों के इस गुण सामर्थ्य का पूरा लाभ उठाते हुए एेसे पादपों का बड़े पैमाने पर प्रवर्धन करते हैं।

ध्यान देने योग्य एक रोचक बात यह है कि अपेक्षाकृत साधारण जीवों में अलैंगिक जनन ही जनन की सामान्य विधि है; जैसे कि शैवाल तथा फंजाई और ये प्रतिकूल परिस्थितियों के आरंभन से पूर्व जनन की लैंगिक विधि की ओर बढ़ने लगती हैं । यह पता करें कि किस प्रकार लैंगिक जनन प्रतिकूल परिस्थितियों में इन जीवों को जीवित रहने में सहायता करता है? लैंगिक जनन एेसी परिस्थितियों में सफलतापूर्वक क्यों संपन्न होता है? उच्च श्रेणी के पादपों में दोनों विधियों अलैंगिक (कायिक) तथा लैंगिक द्वारा जनन देखा गया है। दूसरी ओर, अधिकांश जंतुओं में जनन की केवल लैंगिक विधि ही होती है 


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