बर्दवान में की गई नीलामी की एक घटना
सन् 1797 में बर्दवान (आज के बर्द्धमान) में एक नीलामी की गई। यह एक बड़ी सार्वजनिक घटना थी। बर्दवान के राजा द्वारा धारित अनेक महाल (भूसंपदाएँ) बेचे जा रहे थे। सन् 793 में इस्तमरारी बंदोबस्त लागू हो गया था। ईस्ट इंडिया कंपनी ने राजस्व की राशि निश्चित कर दी थी जो प्रत्येक जमींदार को अदा करनी होती थी। जो जमींदार अपनी निश्चित राशि नहीं चुका पाते थे उनसे राजस्व वसूल करने के लिए उनकी संपदाएँ नीलाम कर दी जाती थीं। चूँकि बर्दवान के राजा पर राजस्व की बड़ी भारी रकम बकाया थी, इसलिए उसकी पदाएँ नीलाम की जाने वाली थीं। नीलामी में बोली लगाने के लिए अनेक ख़रीददार आए थे और संपदाएँ (महाल) सबसे ऊँची बोली लगाने वाले को बेच दी गईं। लेकिन कलेक्टर को तुरंत ही इस सारी कहानी में एक अजीब पेंच दिखाई दे गया। उसे जानने में आया कि उनमें से अनेक ख़रीददार, राजा के अपने ही नौकर या एजेंट थे और उन्होंने राजा की ओर से ही जमीनों को खरीदा था। नीलामी में 95 प्रतिशत से अधिक बिक्री फर्जी थी। वैसे तो राजा की जमीनें खुलेतौर पर बेच दी गई थीं पर उनकी जमींदारी का नियंत्रण उसी के हाथों में रहा था।
राजा कंपनी को राजस्व क्यों नहीं अदा कर पाया था? नीलामी में ख़रीददार कौन थे? यह कहानी उस समय पूर्वी भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में क्या हो रहा था, इसके बारे में हमें
क्या ताती है?
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