अलसकथा

  • अलसकथा 

( अयं पाठः विद्यापतिकृतस्य कथाग्रन्थस्य पुरुषपरीक्षेतिनामकस्य अंशविशेषो वर्तते। पुरुषपरीक्षा सरलसंस्कृतभाषायां कथारूपेण विभिन्नानां मानवगुणानां महत्त्वं वर्णयति, दोषाणां च निराकरणाय शिक्षां ददाति । विद्यापति: लोकप्रियः मैथिलीकविः आसीत्। अपि च बहूनां संस्कृतग्रन्थानां निर्माताsपि विद्यापतिरासीत् इति तस्य विशिष्टता संस्कृतविषयेऽपि प्रभूता अस्ति। प्रस्तुते पाठे आलस्यनामकस्य दोषस्य निरूपणे व्यंग्यात्पिका कथा प्रस्तुता विद्यते। नीतिकाराः आलस्यं रिपुरूपं मन्यन्ते ।)

(यह पाठ विद्यापति द्वारा रचित ‘पुरुष परीक्षा’ नामक कथा ग्रन्थ का अंशविशेष (छोटा-सा भाग) है। संस्कृत भाषा में रचित ‘पुरुष परीक्षा ‘ कथा के माध्यम से विभिन्न मानवीय गुणों के महत्त्व का वर्णन करता है तथा दोषों को दूर करने की शिक्षा देताहै । विद्यापति लोकप्रिय मैथिल कवि थे। विद्यापति और भी बहुत संस्कृत ग्रन्थों के रचयिता थे। संस्कृत विषय में भी उनकी पर्याप्त विशिष्टता थी । प्रस्तुत पाठ में आलस नामक दोष को बताने हेतु एक व्यंग्यात्मक कथा दी गयी है। नीतिकार आलस को शत्रु मानते हैं।)

1. आसीत् मिथिलायां वीरेश्वरो नाम मंन्त्री। स च स्वभावाद् दानशील: कारुणिकश्च सर्वेभ्यो दुर्गतेभ्योऽनाथेभ्यश्च प्रत्यहमिच्छाभोजनं दापयति। तन्मध्येऽलसेप्योऽप्यन्नवस्वे दापयति। यत:-

निर्गतीनां च सर्वेषामलसः प्रथमो मतः।

किञ्चिन्न क्षमते कर्त्तुं जाठरेणाऽपि वह्निना।॥

हिन्दी अनुवाद – दानशील और दयालु, वह संकटप्रस्तों तथा अनाथों को प्रतिदिन भोजन देता था। उनके बीच आलसियों को भी अन्नवस्त्र देता था। क्योंकि- मिथिला में वीरेश्वर नाम का एक मन्त्री था। स्वभाव से सभी अकर्मण्यों में आलसी का प्रथम स्थान है। वह भूख की ज्वाला से पीडित होकर भी कुछ भी करने का प्रयास नहीं करता।

2. ततोऽलसपुरुषाणां तत्रेष्टलाभं श्रुत्वा बहवस्तुन्दपरिमृजास्तत्र वर्त्तुलीबभूवुः यतः-

स्थितिः सौकर्यमूला हि सर्वेषामपि संहते।

सजातीनां सुखं दृष्ट्वा के न धावन्ति जन्तवः॥

हिन्दी अनुवाद : तब आलसी व्यक्तियों का इच्छित लाभ होता सुनकर बहुत से तोन्द बढ़ाने वाले वहाँ इकट्ठा होने लगे। क्यांकि- सुविधाजनक स्थिति अवश्य ही सबको आकर्षित करती है। सजातियां के सुख को देखकर कौन प्राणी नहीं दौड़ पड़ता? अर्थात् सजातियों के सुख को दख कर सब प्राणी  उस सुख को पाने की इच्छा करने लगते हैं।

3. पश्चादलसानां सुख दृष्ट्वा धूताः अपि कृत्रिममालस्य दर्शयित्वा भोज्यं गृहणन्ति तदनन्तरमलसशीलायां बहुद्रव्यव्ययं दृष्ट्वा तन्नियोगिपुरुषैः परामृष्टम् – यदक्षमबुद्ध्द करुणया केवलमलसेभ्यः स्वामी वस्तूनि दापरयाते, कपटेनाऽनलसा अपि गृह्णनि इत्यस्माकं प्रमादः । यदि भवति तदालसपुरुषाणां परीक्षा कुर्मः इति परामृश्य प्रसुप्तपु अलसशालायां तन्नियोगिपुरुषाः वहिनं दापयित्वा निरूपयामासुः।

हिन्दी अनुवाद : वाद में आलसियों के सुख को देखकर धूर्त लोग भी कृत्रिम आलस दिखाकर भोजन ग्रहण करने लगे। तब अलसशाला में बहुत धन का व्यय होता देखकर वहाँ नियुक्त पुरुषों ने परामर्श किया हमारा स्वामी केवल आलसियां को वस्तुएँ दिलवाता है, परन्तु कपट करके जो आलसी नहीं हैं वे भी ले लेते हैं, यह हमारा आलस्य है। यदि हो सके तो हमलोग आलसी पुरुषों की परीक्षा करें, ऐसा परामर्श करके स्रोये हुए आलसियों के घर में वहाँ नियुक्त पुरुषों ने आग लगवा कर निरीक्षण किया।

ततो गृहलग्नं प्रवृद्धमग्निं दृष्ट्वा धूत्ताः सर्वे पलायिताः। पश्चादीषदलसा अपि पलायिता: । चत्वारः पुरुषास्त्रैव सुप्ताः परस्परमालपन्ति। एकेन वस्वावतमुखेनोक्तम्-अहो कथमयं कोलाहल: ? द्वितीयेनोक्तम्तृ तीयेनोक्तम् – कोऽपि तथा धार्मिको नास्ति य इदानीं जलाद्वैर्र्भि : कटैवास्मान्  प्रापवृणोति? चतुर्थेनोक्तम् – अये वाचाला: । कति वचनानि वक्तुं शक्नुष? तूष्णीं कथं न तिष्ठथ?

हिन्दी अनुवाद : तब घर में लगी बढ़ती हुई आग को देखकर सभी धूर्त भाग गयें । कुछ और बाद में जो कम आलसी थे वे भी भाग गये। चार पुरुष वहाँ ही परे हुए बात करने लगे। एक कपड़ा से मुख ढँके हुए ही बोला- अहो यह कैसा कोलाहल
हो रहा है ? दूसरा बोला- लगता है हमारे घर में आग लग गयी है। तीसरा बील- कोई धार्मिक व्यक्ति नहीं है जो इस समय जल से भींगे हुए वस्त्रों या चटाइयों से हमे ढँक दे? चौथा बोला- अरे वाचालों! क्यों इतना बोलते हो? चुप क्यों नहीं रह सकते । 

5. ततश्चतुर्णांमपि तेषामेवं परस्परालापं श्रुत्वा वहिनं च प्रवृद्धमेषामुपरि पतिष्य दृष्ट्वा नियोगिपुरुषैर्वधभयेन चत्वारोऽप्यलसाः केशेष्वावाकृष्य गृहीत्वा गृहाद् बहि:कृतापश्चात्तानालोक्य तैर्नियोगिभिः पठितम् –

पतिरेव गतिः स्त्रीणां बालानां जननी गति:।

नालसानां गतिः कांचिल्लोके कारुणिकं बिना॥

पश्चात्तेषु चतुर्ष्वलसेषु ततोऽप्यधिकतरं वस्तु मन्त्री दापयामास।

हिन्दी अनुवाद : तब उन चारों की परस्पर की बातचीत सुनकर तथा आग को फैल कर उनके ऊपर गिरते देखकर वध के भय से उन नियुक्त पुरुषों ने चारों आलसियों के केशों को पकड़कर खींचते हुए घर से बाहर किया। बाद में उनको देखकर उन नियुक्त पुरुषों द्वारा (यह श्लोक) पढ़ा गया- 
स्त्रियों का रक्षक पति ही होता है और बालकों का रक्षक उनकी माता होती है।संसार में आलसी व्यक्तियों का रक्षक दयावान के बिना कोई नहीं होता।
तब बाद में उन चारों आलसियों को मन्त्री ने और अधिक वस्तु दिलवायी।

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