patliputra vaibhavam,

                         पाटलिपुत्रवैभवम्

(बिहारराज्यस्य राजधानीनगरं पाटलिपुत्रं सर्वेषु कालेषु महत्वमधारयत्। अस्येतिहासः सार्धसहस्रद्वयवर्षपरिमितः वर्तते। अत्र धार्मिकक्षेत्रं राजनीतिक्षेत्रम् उद्योगक्षेत्रं च विशेषण ध्यानाकर्षकम् । वैदेशिकाः यात्रिणः मेगास्थनीज- फाह्यान हुयेनसांग-इत्सिंगप्रभृतयः पाटलिपुत्रस्य वर्णनं स्व- स्व संस्मरणग्रन्थेषु चक्रुः पाठेऽस्मिन्पा टलिपुत्रवैभवस्य सामान्यः परिचयो वर्तते।)

अर्थ : –  (बिहार राज्य की राजधानी पाटलिपुत्र का महत्त्व सभी समय रहा है। इसका इतिहास ढाई हजार वर्षों का है। इसने धार्मिक, राजनीतिक तथा औद्योगिक क्षेत्र के रूप में विशेष रूप से ध्यान आकर्षित किया है। विदेशी यात्री मेगास्थनीज, फाह्यान, हुयेनसांग, इत्सिंग इत्यादि ने पाटलिपुत्र का वर्णन अपने-अपने संस्मरण ग्रन्थों में किया है। इस पाठ में पाटलिपुत्र के वैभव का सामान्य परिचय दिया गया है।)

1. प्राचीनेषु भारतीयेषु नगरेष्वन्यतमं पाटलिपुत्रमनुगङ्गं वसद्विचित्रं महानगरं बभूव। तद्विषये दामोदरगुप्तो नाम कविः कुट्टनीमताख्ये काव्ये कथयति 

अस्ति महीतलतिलकं सरस्वतीकुलगृहं महानगरम् ।

नाम्ना पाटलिपुत्रं परिभूतपुरन्दरस्थानम् ॥

हिन्दी अनुवाद : प्राचीन भारतीय नगरों में गंगा के किनारे बसा हुआ पाटलिपुत्र नामक एक विचित्र महानगर हुआ। उस विषय मं दामादर गुप्त नामक कवि कट्टनीमत काव्य में कहते हैं।
इन्द्रपुरी को भी परिभूत करने वाला, धरती के मालस्वरूप, शिक्षा का महान है पाटलिपुत्र नामक एक महानगर है।

2. इतिहास श्रूयते यत् गङ्गायास्तीरे बुद्धकाले पाटलिग्रामः स्थितः आसीत्। यत्र च भगवान् बुद्धः बहुकृत्वः समागतः। तेन कथितमासीत् यद् ग्रामोऽयं महानगरं भविष्यति किन्तु कलहस्य अग्निदाहसय जलपूरस्य च भयात् सर्वदाक्रान्तं भविष्यति।  कालानरेण पाटलिग्राम: एव पाटलिपुत्रमिति कथितः चन्द्रगुप्त मौर्यस्य काले अस्य नगरस्य शोभा रक्षाव्यवस्था च अत्युत्कृष्टासीदिति यूनानराजदूतः मेगास्थनीजः स्वसंस्मरणेषु निरूपयति। अस्य नगरस्य वैभवं प्रिदर्शिन: अशोकस्य समये सुतरां समृद्धम्।

हिन्दी अनुवाद : इतिहास से ज्ञात होता है कि बुद्ध के समय में गंगा के तट पर पाटलिग्राम स्थित था। और जहाँ भगवान ‘बुद्ध अनेक बार आये थे। उनके द्वारा कहा गया था कि यह गाँव महानगर होगा किन्तु कलह, अग्निदाह तथा बाढ़ के भय से
हमेशा घिरा रहेगा।। समय बीतने पर पार्टालग्राम ही पाटलिपुत्र कहा गया। चन्द्रगुप्त मौर्य के काल में इस नगर की शोभा और रक्षा व्यवस्था अत्यन्त उत्कृष्ट थी ऐसा यूनान के राजदूत मेगास्थनीज ने अपने संस्मरण में वर्णन किया है। इस नगर का वैभव प्रियदर्शिन अशोक के समय और अधिक बढ़ा हुआ था।

3. बहुकालं पाटलिपुत्रस्य प्राचीना सरस्वतीपरम्परा प्रावर्तत इति राजशेखरः स्वकाव्यमीमांसा-नामके कविशिक्षाप्रमुखे ग्रन्थे सादरं स्मरति

अत्रोपवर्षवर्षाविह पाणिनिपिङ्गलाविह व्याडिः।

वररुचिपतञ्जली इह परीक्षिताः ख्यातिमुपजग्मुः ॥

हिन्दी अनुवाद : पाटलिपुत्र की शिक्षा- परम्परा बहुत समय तक चलती रही ।  इसको राजशेखर, ने अपने काव्यशिक्षा के प्रमुख ग्रन्थ ‘काव्यमीमांसा’ में सादर स्मरण किया है- 
यहाँ उपवर्ष, वर्ष, पाणिनि, पिङ्गल, व्याडि, वररुचि पतञ्जलीं तथा परीक्षित इत्यादि  विद्वानों ने ख्याति अर्जित की।

4. कतिपयेषु प्राचीनसंस्कृतग्रन्थेषु पुराणादिषु पाटलिपुत्रस्य नामान्तरं पुष्पपुरं कुसुमपुरं वा प्राप्यते। अनेन ज्ञायते यत् नगरस्यास्य समीपे पुष्पाणां’ बहुलमुत्पादनं भवति स्म। पाटलिपुत्रमिति शब्दोऽपि पाटलपुष्पाणां पुत्तलिकारचनामाश्रित्य प्रचलितः शरत्काले नगरेस्मिन् कौमुदीमहोत्सवः इति महान् समारोह: गुप्तवंशशासनकाले अतीव प्रचलित:। तत्र सर्वे जनाः आनन्दमग्नाः अभूवन्। सम्प्रति दुर्गापूजावसरे तादृशः एव समारोह ः दृश्यते।

हिन्दी अनुवाद : कुछ प्राचीन संस्कृत ग्रन्थों पुराण आदि में पाटलिपुत्र का बदला हुआ नाम पुष्पपुर या कुसुमपुर प्राप्त होता है। इससे ज्ञात होता है कि नगर के समीप में पुष्पों का बहुत उत्पादन होता था। ‘पाटलिपुत्र’ यह नाम भी गुलाब के फूलों की पुत्तलका रचना के आधार पर प्रचलित हुआ था।’ गुप्तवंश के शासनकाल में इ. में शरद्ऋतु में कौमुदी महोत्सव का महान समारोह बड़ा ही प्रचलित था। उ समय सब लोग आनन्दमग्न हो जाते थे। वर्तमान समय में दुर्गापूजा के अवसर पर वैसा ही समारोह दिखाई देता है।

5. कालचक्रवशाद् यद्यपि मध्यकाले पाटलिपुत्रं वर्षसहंस्रपरिमितं जीर्णतामन्वभूत्। तस्य सङ्केतः अनेकेषु साहित्यग्रन्थेषु मुद्राराक्षसादिषु लभ्यते। मुगलवंशकाले अस्य नगरस्य समुद्धारो जात:। आंग्लशासनकाले च पाटलिपुत्रस्य सुतरां विकासो जात:। नगरमिदं मध्यकाले ‘एव पटनेति नाम्ना प्रसिद्धिमगात्। अयं च शब्दः पत्तनमिति शब्दात्   निर्गत। नगरस्य पालिका देवी पटनदेवीति अद्यापि पूज्यते।

हिन्दी अनुवाद : यद्यपि कालचक्र के कारण मध्यकाल में करीब हजार वर्षों तक पाटलिपुत्र जीर्ण-शीर्ण हालत में पड़ा रहा। उसका सङ्केत अनेक साहित्य ग्रन्थों मुद्राराक्षस इत्यादि में प्राप्त होता है। मुगलवंश के शासन काल में इसका उद्धार हुआ। अंग्रजों के शासनकाल में पाटलिपुत्र का और अधिक विकास हुआ। मध्यकांल में ही इस नगर ने पटना नाम से प्रसिद्धि प्राप्त की। यह शब्द ‘पत्तन” शब्द से निकला है। नगर की पालिका देवी पटनदेवी आज भी पूजी जाती हैं।

6. सम्प्रति पाटलिपुत्रम् (पटना नाम नगरम्) अति विशालं वर्तते बिहारस्य राजधानी चास्ति। अनुदिनं विस्तारः भवति। अस्योत्तरस्यां दिशि गड्गा नदी प्रवहति। तस्या उपरि गाँधीसेतुर्नाम एशियामहादेशस्य दीर्घतमः सेतुः किञ्च रेलयानसेतुरपि निर्मीयमानो वर्तते। नगरेऽस्मिन् उत्कृष्टः संग्रहालय:, उच्चन्यायलयः, सचिवालयः, गोलगृहम्तारामण्डलम्, जैविकोद्यानम्, मौर्यकालिकः अवशेषः, महावीरमन्दिरम्-इत्येते दर्शनीयाः सन्ति। प्राचीनपटनागरे सिखसम्प्रदायस्य पूजनीयं स्थलं दशमुगरोः गोविन्दसिंहस्य जन्मस्थानं गुरुद्वारेति नाम्ना प्रसिद्धं वर्तते। तत्र देशस्यास्य तीर्थयात्रिणि: दर्शनार्थमायान्ति।

हिन्दी अनुवाद : इस समय पाटलिपुत्र (पटना नामक नगर) अत्यन्त बड़ा है और बिहार की राजधानी है। दिन-प्रतिदिन नगर का विस्तार हो रहा है । इसके उत्तर दिशा में गड्गा नदी बहती है। उसके ऊपर एशिया महादेश का सबसे बड़ा पुल महात्मा गांधी सेतु नाम से है और रेलगाड़ी का पुल निर्माणाधीन है। इस नगर में उत्कृष्ट संग्राहलय,
उच्चन्यायालय, सचिवालय, गोलघर, तारामण्डल, जैविक उद्यान, मौर्यकाल काल का अवशेष तथा महावीर मन्दिर इत्यादि दर्शनीय स्थान हैं। प्राचीन पटना नगर अर्थात् पटना
सिटी में सिख सम्प्रदाय का पूजा स्थल दसवे गुरु गोविन्द सिंह का जन्मस्थान नामक प्रसिद्ध गुरुद्वारा है। वहाँ इस देश के तीर्थयात्री दर्शन के लिये आते हैं।

7. एवं पाटलिपुत्रं प्राचीनकालात् अद्यावधि विभनेषु क्षेत्रेषु वैभवं धारयति सर्व संकलितरूपेण संग्रहालये दर्शनीयमिति। पर्यटनमानचित्रे नगरंमिदं महत्त्वपूर्णम्।

हिन्दी अनुवाद : इस प्रकार पाटलिपुत्र प्राचीनकांल से आजतक के विभिन्न क्षेत्रो  में स्थित वैभव को धारण करता है। इसे सम्मिलित रूप में संग्राहलय में देखा जा सकता है। पर्यटन मानचित्र में यह नगर महत्त्वपूर्ण है।
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