भारतीयसंस्काराः Class 10 th

भारतीय संस्कारसंस्काराः 

(संस्काराः  स्न्यतमं वैशिष्ट्यं विद्युते यत् जीवने इह समये समये संस्कारा अनुष्ठिता भवन्ति। अद्य संस्कारशब्दः सीमितो व्यङग्यरूपः प्रयुज्यते किन्तु संस्कूतेरुपकरणमिदं भारतस्य व्यक्तित्वं रचयति । विदेशे निवसन्तो भारतीयाः संस्कारान् प्रति उन्मुखा जिज्ञासवश्च। पठेऽस्मिन् तेषां संस्काराणां संक्षिप्तः परिचयो महत्त्वञ्च निरूपितम्।)

(भारतीय संस्कृति की एक महत्त्वपूर्ण विशिष्टता है कि इसमें जीवन में समय-समय पर संस्कारों का अनुष्ठान होता है आजकल संस्कार शब्द संकुचित व्यंग्यरूप में प्रयुक्त होता है, परंतु संस्कृति का उपकरण यह भारत के व्यक्तित्व की रचना करता है। विदेश में रहने वाले भारतीय संस्कारों के प्रति चैतन्य और जिज्ञासु हैं। इस पाठ में उन संस्कारों का संक्षिप्त परिचय एवं महत्त्व निरूपित किया गया है।)

1. भारतीयजीवने प्राचीनकालतः संस्काराः महत्त्वमधारयन् । प्रावीनसंस्कृतेरभिज्ञानं संस्कारेभ्यो जायते। अत्र ऋषीणां कल्पनासीत् यत् जीवनस्य सर्वेषु मुख्यावसरेषु वेदमन्त्राणां पाठ: वरिष्ठाणाम् आशीर्वादः होम: परिवारसदस्यानां सम्मेलनं च भवेत्। तत् सर्वं संस्काराणामनुष्ठाने संभवति। .एवं संस्काराः महत्त्वं धारयन्ति। किञ्च संस्कारस्य मौलिकः अर्थ: परिमाज्जनरूपः गुणाधानरूपश्च न. विस्मर्यते। अतः संस्काराः मानवस्य क्रमशः परिमार्ज़ने दोषापनयने गुणाधाने च योगदानं कुर्वन्ति।

हिन्दी अनुवाद : भारतीय जीवन में प्राचीन काल से संस्कारों का महत्त्व रहा है। प्राचीन संस्कृति की पहचान संस्कारों से होती है। यहाँ ऋषियों की कल्पना थी कि जीवन के सभी मुख्य अवसरों पर वेदमंत्रों का पाठ, गुरु जनों का आशीर्वाद होम तथा परिवार के सदस्यों का एकत्रीकरण हो। वह सब संस्कारों के अनुष्ठान के अवसर पर ही संभव है। इस प्रकार ही संस्कार महत्त्व धारण करते हैं। परंतु संस्कार का मौलिक अर्थ शुद्धीकरण अर्थात् परिष्कार और गुणों का ग्रहण अर्थात्आ रोपण न भूलना चाहिए। अत: संस्कार मानवों के शुद्धीकरण में, दोषों को दूर करने में तथा गुणों को गहण करने में योगदान करते हैं।

2. संस्काराः प्रायेण पञ्चविधाः सन्ति-जन्मपूर्वाः:त्रयः, शैशवाः षट्, शैक्षणिका: पञ्चे गृहस्थसंस्कारः विवाहरूपः एकः मरणोत्तरसंस्कारश्चैकः। एवं षोडश संस्कारा: भवन्ति जन्मपूर्वसंस्कारेषु गर्भाधानं पुंसवनं सीमन्तोनयनं चेति त्रयो भवन्ति। अत्र गर्भरक्षा, गर्भस्थस्य संस्कारारोपणम् गर्भवत्याश्च प्रसन्नता चेति प्रयोजनं कल्पितमस्ति। शैशवसंस्कारेषु जातकर्म, नामकरणम्, निष्करमणम्, अन्नप्राशनम्, चूडाकर्म, कर्णवेध श्चेति क्रमशो भवन्ति।

हिन्दी अनुवाद : संस्कार प्राय: पाँच प्रकार के होते हैं- जन्म पूर्व के तीन, शैशव काल के छः, शिक्षा ग्रहण काल में पॉाँच, विवाहरूप में एक गृहस्थ संस्कार और एक मरणोपरांत संस्कार। इस प्रकार सोलह संस्कार होते हैं। जन्मपूर्व संस्कारों में गर्भाधान, पुंसवन और सीमन्तोनयन ये तीन संस्कार होते हैं। यहाँ (इन संस्कारों का) गर्भरक्षा, गर्भस्थ शिशु में उत्तम संस्कारों का आरोपण तथा गर्भवती स्त्री की प्रसन्नता प्रयोजन
माना गया है। शैशवकाल के संस्कारों में क्रमश: जातकर्म, नामकरण, निष्क्रमण अन्नप्राशन, चूडाकर्म तथा कर्णवेध होते हैं।

3. शिक्षासंस्कारेषु अक्षरारम्भ:, उपनयनम्, वेदारम्भ:, केशान्तः समावर्त्तनञ्चेति संस्काराः  प्रकल्पिताः। अक्षरारम्भे अक्षरलेखनम् अङ्कलेखनं च शिशुः प्रारभते उपनयनसंस्कारस्य अर्थ: गुरुणा शिष्यस्य स्व गृहे नयनं भवति । तत्र शिष्यः शिक्षानियमान् पालयन्अ ध्ययनं करोति। ते नियमा: ब्रह्मचर्यक्रते समाविष्टा: । प्राचीनकाले शिष्यः ब्रह्मचारी इति कथ्यते स्म। गुरुगृहे एव शिष्यः वेदारम्भं करोति स्म। वेदानां महत्त्वं प्राचीनशिक्षायाम्   उत्कृष्ट मन्यते स्म। केशान्तसंस्कारे गुरुगृहे एव शिष्यस्य प्रथमं क्षौरकर्म भवति स्म। अत्र गोदानं मुख्यं कर्म। अतः साहित्यग्रन्थेषु अस्य नामान्तरं गोदानसंस्कारोऽपि लभ्यते समावर्त्तनसंस्कारस्योह्देश्यं शिष्यस्य गुरुगृहात् गृहस्थजीवने प्रवेशः। शिक्षावसाने गुरुः शिष्यान् उपदिश्य गृहं प्रेषयति । उपदेशेषु प्रायेण जीवनस्य धर्माः प्रतिपाद्यन्ते। यथा-सत्यं वद, धर्म चर, स्वाध्यायान्मा प्रमदः इत्यादि।

हिन्दी अनुवाद : शिक्षाकाल के संस्कारों में अक्षरारम्भ, उपनयन, वेदारम्भ, केशान्त और समावर्तन संस्कार कल्पित किये गये हैं। अक्षरारम्भ में शिशु अक्षरलेखन तथा अङ्कलेखन आरम्भ करता है। उपनयन संस्कार का अर्थ गुरु द्वारा शिष्य को अपने घर ले जाना होता है। वहाँ शिष्य शिक्षा के नियमों का पालन करते हुए अध्ययन करता है। वे नियम ब्रह्मचर्य व्रत में शामिल हैं। प्राचीन काल में शिष्य ब्रह्मचारी कहा जाता था। गुरु के घर पर ही शिष्य वेद का आरम्भ करता था। प्राचीन शिक्षा में वेदों का अत्यधिक महत्त्व था। केशान्त संस्कार में गुरु के घर पर ही पहला क्षौरकर्म होता था। इसमें
गोदान मुख्य कर्म था। इस कारण साहित्य ग्रन्थों में इसका अन्य नाम गोदान संस्कार भी प्राप्त होता है। समावर्तन संस्कार का उद्देश्य शिष्य का गुरु के घर से वापस गृहस्थ जीवन में प्रवेश था। शिक्षा समाप्ती पर गुरु शिष्यों को उपदेश देकर घर भेजता था उपदेशों में प्रायः जीवन का धर्म प्रतिपादित होता था। जैसे- सत्य बोलो, धर्म का आचरण करो, स्वाध्याय में प्रमाद मत करो इत्यादि।

4. विवाहसंस्कारपूर्वकमेव मनुष्यः वस्तुतो गृहस्थज़ीवनं प्रविशति। विवाहः पवित्रसंस्कारः मतः यत्र नानाविधानि कर्मकाण्डानि भवन्ति। तेषु वाग्दानम्, मण्डपनिर्माणम् , वधूगृहे वरपक्षस्य स्वागतम्, वरवध्वेः परस्परं निरीक्षणम्, कन्यादानम्, अग्निस्थापनम्, पाणिग्रहणम्, लाजाहोमः, सप्तपदी, सिन्दूरदानम् इत्यादि। सर्वत्र समानरूपेण विवाहसंस्कारस्य प्रायेण आयोजनं भवति। तदनन्तरं गर्भाधानादयः संस्काराः पुनरावर्तन्ते जीवनचक्रं च भ्रमति । मरणादनन्तरम् अन्त्येष्टिसंस्कारः अनुष्ठीयते। एवंमहत्त्वपूर्णमुपादानं संस्कारः इति।

हिन्दी अनुवाद : विवाह संस्कार होने के बाद ही मनुष्य वस्तुतः गृहस्थ जावन में प्रवेश करता है। विवाह पवित्र संस्कार माना जाता है जिसमें नाना प्रकार के कर्मकाण्ड सम्पन्न होते हैं। उनमें वाग्दान, मण्डपनिर्माण, वधू के घर में वरपक्ष का
स्वागत, वर वधू का एक दूसरे का निरीक्षण, कन्यादान, अग्नि की स्थापना, पाणिग्रहण, धान के लावे से हवनं, सप्तपदी, सिन्दूरदान इत्यादि होते हैं। विवाहसंस्कार का प्राय: सर्वत्र समान रूप से आयोजन होता है। पुन: गर्भाधान आदि संस्कारों की पुनरावृत्ति होती है और जीवन चक्र आगे चलता है। मरने के बाद अन्त्येष्टि संस्कार सम्पन्न होता है।इस प्रकार संस्कार भारतीय जीवन दर्शन का मुख्य स्रोत है।
  

          सरांश 

समय-समय पर सम्पन्न होने वाले संस्कार भारतीय संस्कृति की एक खास विशिष्टता है जो भारत के व्यक्तित्व की रचना करते हैं। ऋषियों की मान्यता है कि मुख्य अवसरों पर वेदमन्त्रों का पाठ, गुरुजनों का आशीर्वाद, हवन तथा परिवार के सदस्यों का एकत्रीकरण होना चाहिए। यह सब संस्कारों के अनुष्ठान पर ही सम्भव होता है। संस्कार मनुष्यों के शुद्धिकरण, उनमें दोषों को दूर करने तथा उनमें गुणों क
आरोपण में भी सहायक होते हैं। पाँच प्रकार के संस्कारों में कुल सोलह संस्कार होते हैं। (1) जन्मपूर्व के तीन संस्कार- गर्भाधान, पुंसवन तथा सीमन्तोनयन; (2) शैशवकाल के छः संस्कार जातकर्म, नामकरण, निष्क्रमण, अन्नप्राशन, चूडाकर्म तथा कर्णवेध (3) शिक्षा प्राप्तिकाल के पाँच संस्कार- अक्षरारम्भ, उपनयन, वेदारम्भ, केशान्त तथा समावर्तन (4) विवाह संस्कार जिसके अन्तर्गत अनेक कर्मकाण्ड होते हैं; यथा- वाग्दान, मण्डप निर्माण, के घर पर वर पक्ष का स्वागत, वर-वधू का परस्पर निरीक्षण, कन्यादान, अग्निस्थापन,
पाणिग्रहण, लाजाहोम, सप्तपदी, सिन्दूरदान इत्यादि। (5) मरणोपरान्त अत्येष्टि संस्कर। वास्तव में संस्कार भारतीय जीवन दर्शन के महत्त्वपूर्ण उपादान हैं।

    अभ्यासः (मौखिक:)

1. एकपदेन वदत-

(क) संस्कारा: कतिं सन्ति?
(ख) जन्मतः पूर्व कति संस्काराः भवन्ति?
(ग) शैशवे कति संस्काराः भवन्ति?
(घ) अक्षरारम्भ: कीदृशः संस्कार:?
(ङ) गृहस्थजीवनस्य एक: संस्कार: क: ?
उत्तर- (क) षोडश
(ख) त्रयः
(ग) षट्
(घ) शिक्षासंस्कारेषु प्रथम:
(ङ) विवाह:

अभ्यासः (लिखितः)

1. एकपदेन उत्तराणि लिखत-

(क) भारतीयसंस्कृते: परिचय: केभ्यः जायते?
(ख) शैक्षणिका: संस्काराः कति सन्ति?
(ग) ‘सप्तपदी’ क्रिया कस्मिन् संस्कारे विधीयते?
(घ) भारतीयदर्शनस्य महत्त्वपूर्णम् उपादानं किम्?
(ङ) सीमन्तोन्नयनं केषु संस्कारेषु गण्यते?
(च) अन्नप्राशनम् केषु संस्कारेषु गण्यते?
(छ) गुरुगृहे शिष्यः कान् पालयन् अध्ययनं करोति?
उत्तर- (क) संस्कारेभ्य:
(ख) पञ्च
(ग) विवाहे
(घ) संस्कारम्
(ङ) जन्मपूर्वेषु
(च) शैशवेषु
(छ) शिक्षानियमानम् 

2. पूर्णवाव्येन उ्तराणि लिखत-

(क) संस्कारा: मानवस्य कुत्र-कुत्र योगदानं कुर्नत?
(ख) शैक्षणिकसंस्कारेषु के के संस्कारा: प्रकल्पिताः?
(ग) शैशवसं्कारेषु के के संस्कारा: सम्पद्ये?
(घ) विवाहसंस्कारे कानि मुख्यानि कार्याणि भवनति?
(ङ) अन्यष्टिसंस्का: कदा सम्पाध्ते?
(च) पुंसवनसंस्कर का क्रियते?
(छ)परा शिष्यः वेदाम्भं कुत्र करोति स्म?

उत्तर- 

(क) संस्कारा: मानवस्य क्रमशः परिमार्जने, दोषापनयने गुणाधाने च योगदानं कुर्वन्ति।

(ख) शैक्षणिकसंस्कारेषु अक्षरारम्भ:, उपनयनम्, वेदारम्भ:, केशान्तः समावर्तनञ्च पञ्च संस्काराः प्रकल्पिता।

(ग) शैशवसंस्कारेषु जातकर्म, नामकरणम्, निष्क्रमणम्, अन्नप्राशनम्, चूडाकर्म, कर्णभेदश्च षट् संस्काराः सम्पद्यन्ते।

(घ) विवाहसंस्कारे वाग्दानम्, मण्डपनिर्माणम्, वधूगृहे वरपक्षस्य स्वागतम्, वरवध्वोः परस्परं निरीक्षणम्, कन्यादानम्, अग्निस्थापनम्, पाणिग्रहणम्, लाजाहोम:, सप्तपदी, सिन्दूरदानम् च मुख्यानि कार्याणि भवन्ति।

(ङ) अन्त्येष्टिसंसकारः मरणादनन्तरं सम्पाद्यते।(च) जन्मपूर्व गर्भाधानोपरान्तं पुंसवनसंस्कार: क्रियते।

(छ)पुरा शिष्या: वेदारम्भं गुरुगृहे करोति स्म ।

भारतीयसंस्काराः वस्तुनिष्ठ प्रश्न 

1. अन्तिम शिक्षा संस्कार का नाम क्या है?
(क) उपनयनम्        
(ख) समावत्तेनम्
(ग) अक्षरारम्भ:        
(घ) वेदारम्म:  
उत्तर- क 
   
2. गुरु सो घर में शिष्य किसको पालन करते हुए अध्ययन करते हैं?
(क) शिक्षा नियम को        
(ख) रीति नियम को
(ग) विधि नियम को          
(घ) संयम् नियम को
उत्तर- क 
3. अंत्येष्टि संस्कार कब होता है ?
(क) जीवन पूर्व         
(ख) जीवन में
(ग) मौत के पश्चात   
(घ) शादी में
उत्तर- ग 
4. सीमन्तोनृयन किस प्रकार का संस्कार है?
(क) जन्मपूर्व संस्कार
(ख) शैशव संस्कार
(ग) शैक्षणिक संस्कार
(घ) शादी में
उत्तर- क 
5. प्राचीन काल में शिष्यों को क्या कहा जाता था?
(क) छात्र
(ख) ब्रह्मचारी
(ग) धनुर्धारी 
(घ) अन्तेवासी
उत्तर- ख 
6. जन्मपूर्व संस्कार कितने हैं?
(क) षट् 
(ख) पञ्च
(ग) एक:
(घ)  त्रयः
उत्तर- घ 
7. सप्तपदी क्रिया किस संस्कार में सम्पन्न की जाती है?
(क) जातकर्म
(ख) निष्क्रमण
(ग) विवाह
(घ) समावर्तन
उत्तर-(ग)
8. अक्षर आरम्भ कैसा संस्कार है?
(क) विवाह संस्कार
(ख) शिक्षा संस्कार
(ग) उपनयन संस्कार
(ख) शिक्षा संस्कार
उत्तर-(ख)
9. ‘विवाह संस्कार’ के अन्तर्गत क्या नहीं आता है?
(क) गोदान
(ख) वाग्दान
(ग) कन्यादान
(घ) सिन्दूरदान
उत्तर-(क)
10. विवाह संस्कार पूर्ण करते हुए मनुष्य कहाँ प्रवेश करते हैं?
(क) विद्या अध्ययन में    
(ख) वानप्रस्थ जीवन मे
(ग)गृहस्थ जीवन में
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर- (ग)
11. विवाह एक संस्कार होता है-
(क) पवित्र
(ख) निर्मल
(ग) अपवित्र
(घ) शुद्ध
उत्तर- (क)
12. अग्नि संस्कार किस संस्कार में गिना जाता है?
(क) विवाह संस्कार
(ख) अंत्येष्टि संस्कार
(ग) शिक्षा संस्कार
(घ) जन्म के पूर्व संस्कार 
उत्तर- क 
13. साहित्य ग्रन्थों में गोदान कर्म का नामान्तर को क्या कहा ज़ाता है?
(क) विवाह संस्कार
(ख) गौदान संस्कार
(ग) शिक्षा संस्कार 
(घ) मरणोतर संस्कार
उत्तर-(ख)
14. ‘गोदान’ किस संस्कार का मुख्य कर्म है?
(क) उपनयन संस्कार का
(ख) समावर्तन संस्कार का 
(ग) कैशान्त संस्कार का 
(घ) सीमन्तोनयन संस्कार का
उत्तर-(ग)
15. कर्मकाण्ड ग्र्थ किस शास्त्र के अन्तर्गत हैं?
(क) शिक्षा
(ख) कल्प
(ग) व्याकरण
(घ) ज्योतिष
उत्तर-(ख)
16. कन्यादान किस संस्कार में होता है?
(क) समावर्तन संस्कार में
(ख) उपनयन संस्कार में 
(ग) केशान्त संस्कार में
(घ) विवाह संस्कार में
उत्तर (घ)
17. भारतीय संस्कार कुल कितने हैं?
(क) पाँच
(ख) सात
(ग) सोलह
(घ) अठारह
उत्तर-(ग)
18. भारत के व्यक्तित्व की रचना कौन करता है ? 
(क) आलस
(ख) संस्कार 
(ग) व्यवहार
(घ) आचरण
उत्तर- (ख)
19. शिक्षा संस्कार कितने हैं?
(क) दो
(ख) आठ
(ग) पाँच
(घ) तीन
उत्तर- (ग)
20. संस्कार के प्राय: कितने विभाग है?
(क) पाँच
(ख) छ:
(ग) सात
(घ) सोलह
उत्तर – घ 
21. शैशवावस्था के संस्कार कितने हैं?
(क) छ:
(ख) सात
(ग) आठ
(घ) पाँच
उत्तर- क 
22. उपनयन संस्कार का अर्थ क्या है?
(क) गुरु के द्वारा शिष्य को अपने घर से दूर ले जाना
(ख) गुरु के द्वारा शिष्य को वन में ले जाना
(ग) गुरु के द्वारा शिष्य को अपने घर लाना
(घ) गुरु के द्वारा शिष्य को अन्यम पाठशाला में ले जाना
उत्तर-(ग)
23. प्राचीन काल में ब्रह्यचारी कहाँ पढ़ते थे?
(क) गुरु के घर में
(ख) विद्यालय में
(ग) जंगल में 
(घ) पाठशाला में 
उत्तर (क)
24. जातकर्म किस संस्कारों में होता है?
(क) जन्मपूर्व संस्कार
(ख) विवाह संस्कार
(ग) शिक्षा संस्कार
(घ) शैशव संस्कार
उत्तर – घ 
25. केशान्त समावर्त्तन संस्कार किस संस्कारों में होता है?
(क) विवाह संस्कार
(ख) शैशव संस्कार
(ग) शिक्षा संस्कार
(घ) जन्मपूर्व संस्कार
उत्तर-(ग)
26. केशान्तु संस्कार में कौन-सा कर्म होता है?
(क) क्षौर कर्म
(ख) विद्या अध्ययन कर्म 
(ग) गोदान कर्म
(घ) विवाह कर्म
उत्तर (क)
27. मण्डप निर्माण का आयोजन किस संस्काराः मे होता हैं ? 
(क) जन्म पुर्व संस्कार 
(ख) विवाह संस्कार 
(ग) शिक्षा संस्कार
(घ) उपनयन संस्कार
उत्तर – ख 
28. धारतीय जीवन दर्शन का महत्वपूर्ण उपादान है-
(क) व्यवहार
(ख) संस्कार
(ग) उत्तम विचार
(घ) रीति-रिवाज
उत्तर- ख 
29. मनुष्य का गुण-दोष किससे निर्धारित होता है?
(क) संस्कार से
(ख) घर से
(ग) पढ़ने से
(घ) व्यवहार से
उत्तर-(क)
30. मुख्य अवसर पर किन लोगों का मिलन होता है?
(क) परिवार के सदस्यों का 
(ख) छात्रों का
(ग) शिष्यों का
(घ) गुरुओं का
उत्तर-(क)
31, शिष्य का प्रथम क्षौरकर्म कहाँ होता है?
(क) अपने घर पर
(ख) गुरु के घर पर
(ग) मामा के घर पर
(घ) दादा के घर पर
उत्तर- ख 
32. शिक्षा समाप्त होने पर गुरु-शिष्य को कहाँ भेजते हैं?
(क) गाँव में
(ख) यज्ञ में
(ग) वन में
(घ) अपने घर में
उत्तर-(घ)
33. गृहस्थ जीवन का एक कौन संस्कार है?
(क) शिक्षा संस्कार
(ख) विवाह संस्कार
(ग) उपनयन संस्कार
(घ) अन्त्येष्टि संस्कार
उत्तर-(ख)
34. भारतीय संस्कृति का परिचय किससे होती है?
(क) आचरण से
(ख) संस्कार से
(ग) व्यवहार से
(घ) इनमें से कोई नहीं 
उत्तर- (ख)
35. सप्तपदी क्रिया किस संस्कार में होती है?
(क) शिक्षा संस्कार
(ख)उपनयन संस्कार
(ग) विवाह संस्कार
(घ) अन्त्येष्टि संस्कार
उत्तर-(ग)
36.  नमाकरण को किस संस्कार में गणना की जाती है?
(क) जन्म के पूर्व संस्कार
(ख) विवाह संस्कार
(ग) शिक्षा संस्कार
(घ) शैशव संस्कार
उत्तर-घ 
37. अनप्राशनम् को किस संस्कार में गणना की जाती है?
(क) शिक्षा संस्कार
(ख) शैशव संस्कार
(ग) विवाह संस्कार
(घ) उपनयन संस्कार
उत्तर- ख 

भारतीयसंस्काराःलघुत्तरीय प्रश्न

1. शैशव संस्कारों पर प्रकाश डालें।

उत्तर – संस्कारों में शैशव संस्कार सर्वोत्तम है। यह संस्कार मनुष्यों के भविष्य का आधारशीला होता है। इनके अंतर्गत जातकर्म, नामकरण, निष्क्रमण,
अन्नप्राशन, चूड़ाकर्म तथा कर्णवेध कुल छः संस्कार होते हैं।

2. शैक्षणिक संस्कार कौन-कौन से हैं?

उत्तर- शैक्षणिक संस्कारों में अक्षरारम्भ, उपनयन, वेदारम्भ, कशान्त तथा समावर्त्तन संस्कार होते हैं।

3. केशान्त संस्कार को गोदान संस्कार भी कहा जाता है, क्यों?

उत्तर-केशान्त संस्कार में गुरू गृह में ही शिष्य का प्रथम क्षौरकर्म (मुण्डन) होता था। इसमें गोदान मुख्य कर्म होता था। अत: साहित्य ग्रन्थों में इसका दूसरा नाम गोदान संस्कार भी कहा जाता है।

4. आारतीय संस्काराः पाठ का पाँच वाक्यों में परिचय दें।

उत्तर- भारतीय जीवन-दर्शन में चौल कर्म (मुण्डन), उपनयन, विवाह आदि संस्कारों की प्रसिद्धि है । छात्रगण संस्कारों का अर्थ तथा उनके महत्त्व
को जान सकें, इसलिए इस स्वतंत्र पाठ को रखा गया है जिससे उन्हें भारतीय संस्कृति के एक महत्त्वपूर्ण पक्ष का व्यवस्थित परिचय मिल सके।

5. कुल की रक्षा कैसे होती है?

उत्तर-कुल की रक्षा आचरण से होती है। इसलिए हमें पवित्र आचरण का व्यवहार सदैव करना चाहिये।

6. स्कार कितने होते हैं? विवाह संस्कार का वर्णन करें। अथवा, ‘भारतीयसंस्काराः’ पाठ के आधार स्पष्ट करें कि संस्कार कितने हैं? विवाह संस्कार का वर्णन करें।

उत्तर-संस्कार सोलह हैं। विवाह संस्कार के उपरांत ही मनुष्य वस्तुतः गृहस्थ जीवन में प्रवेश करता है। विवाह पवित्र संस्कार है जहाँ विविध विधान कर्मकाण्ड होते हैं। उनमें वाग्दान (वचनबद्धता), मण्डप निर्माण (मॅडवा), वधू
के घर पर वरपक्ष को स्वागत, वर-वधू का परस्पर निरीक्षण,कन्यादान, লरपना, पाणिग्रहण (हाथ देना), लाजाहोम (धान के लावे से हवन),सप्तपदी सात वचनों से फेरे), सिन्दूरदान इत्यादि। सभी जगह प्रायः विवाह-संस्कार
आगोजन होता है। तदनन्तर गर्भधान इत्यादि संस्कार पुनरावृत्त होकर वनाक धूमता है। मरण के अनन्तर अन्त्येष्टि संस्कार अनुष्ठित होता है। इस प्रकार भीरतीय दर्शन का महत्त्वपूर्ण स्रोत स्वरूप संस्कार है।

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